बी ए - एम ए >> फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्रयूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर
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विद्या, ज्ञान, शिक्षण, प्रशिक्षण एवं शिक्षा
(Vidya, Gyan, Teaching, Training and Education)
प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
शिक्षा का कार्यकारी पहलू शिक्षण है जिसे वह स्वयं नहीं बल्कि दूसरों की सहायता (शिक्षक) से प्राप्त करता है। शिक्षण का लक्ष्य ज्ञान, अनुभव, कौशल प्रदान करना होता है। शिक्षण की प्रक्रिया शिक्षक और विद्यार्थी के परस्पर आपसी विचार-विनिमय या अन्तःक्रिया द्वारा संचालित होती है। अतएव- कहा जा सकता है कि - "शिक्षण शिक्षक की सप्रयोजन, सचेतन, लक्ष्यपूर्ति से सम्बन्धित तकनीकी (विधि) है जिसका सम्बन्ध विषय-वस्तु को शिक्षार्थियों को आत्मसात् कराने की प्रक्रिया से होता है।'
शिक्षण की अवधारणा को अनेक शिक्षाविद अलग-अलग दृष्टिकोण से प्रकट करते हैं। शिक्षाविदों के दृष्टिकोणों को निम्नवत् समझा जा सकता है -
शिक्षण की संकुचित अवधारणा
(Narrower Concept of Teaching)
(1) शिक्षण द्विमुखी प्रक्रिया है (Teaching is a Bipolar Process) - एडम्स ने शिक्षण को द्विमुखी प्रक्रिया बताया है। उनका मानना है कि शिक्षण के दो मुख शिक्षक और शिक्षार्थी हैं शिक्षक अपने व्यक्तित्व से शिक्षार्थी के विकास हेतु व्यवहार को परिवर्तित करता है इस प्रकार शिक्षण की यह प्रक्रिया एक चेतन और विचारपूर्ण प्रक्रिया है।
(2) शिक्षण त्रिमुखी प्रक्रिया है (Teaching is a Tripolar Process) - जॉन डीवी शिक्षण को द्विमुखी प्रक्रिया न मानकर त्रिमुखी प्रक्रिया मानते हैं उनका मानना है कि शिक्षक और शिष्य के अतिरिक्त एक तीसरा तत्व भी है। यह तत्व विषय-वस्तु हैं। शिक्षण की प्रक्रिया इन तीन केन्द्र बिन्दुओं के आपसी सम्मिलन से गतिशील होती है। इन तीनों में से किसी एक की अनुपस्थिति में शिक्षण की प्रक्रिया अस्त-व्यस्त सी हो जाती है। अतः शिक्षण तीन सामूहिक पक्षों के सम्मिलन पर आधारित अन्तः क्रियात्मक प्रक्रिया है।
(3) शिक्षण एक कला है (Teaching is an Art) - एमीडोन के मतानुसार "जिस प्रकार शिल्प का संगमरमर के टुकड़े से सम्बन्ध होता है ठीक उसी प्रकार से शिक्षण का सम्बन्ध मानव आत्मा से होता है जिससे स्पष्ट होता है कि जिस प्रकार कलाकार कलात्मक दक्षता को प्रकट करता है ठीक उसी प्रकार शिक्षक अपनी शिक्षण कला से शिक्षार्थी की आत्मा में निहित ज्ञान को बाहर निकालकर उसे नवीन रूप देता है।
(4) शिक्षण विज्ञान है (Teaching in a Science) - सिल्वरमैन का मानना है कि शिक्षण विज्ञान है। उन्होंने लिखा है कि "यदि विश्वासपूर्वक कहा जाए कि शिक्षण औषधियों का अभ्यास करने जैसी कला है वही अगर इसे दूसरे तरीके से कहें तो उसे बुद्धि उत्पन्न करने की शक्ति का अभ्यास कहा जा सकता है। परन्तु उसमें औषधियों जैसा कि विज्ञान भी है क्योंकि उसे तरीकों, तकनीकों तथा कौशलों को एकत्र करने की आवश्यकता होती हैं। जिससे कि अध्ययन वर्णन और परिमार्जन सुव्यवस्थित ढंग से किया जा सकें। एक उत्तम शिक्षक, एक निपुण चिकित्सक की तरह होता है जो कि मूलभूत संग्रह को सृजनशीलता एवं प्रेरणा प्रदान करके समृद्धशाली बनाता है।
(5) शिक्षण बालक का व्यवहार परिवर्तन है (Teaching is a Change of Pupil's Behaviour) - क्लार्क के अनुसार, “शिक्षण वह क्रिया है जो विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए नियोजित एवं संचलित की जाती है।' गेज के अनुसार, “शिक्षण अन्तः वैयक्तिक प्रभावों का स्वरूप है जिसका उद्देश्य दूसरे व्यक्ति के व्यवहार विभव को परिवर्तित करना है।'
उपरोक्त मतों के अनुसार यह स्पष्ट है कि शिक्षण की अवधारणा विविधता से युक्त है। ये सभी दिए गए दृष्टिकोण शिक्षण के एकांगी पक्ष को प्रकट करते हैं। वास्तव में देखा जाए तो शिक्षण एकांगी न होकर बहुआयामी दृष्टिकोण से समन्वित है।
(6) शिक्षण अधिगम की समस्याओं का समाधान है (Teaching is Problem Solving) - जॉन ब्रूवेकर के मतानुसार, "सीखने के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करके सीखने की ओर अभिप्रेरित करना शिक्षण है।'
शिक्षण की व्यापक अवधारणा
(Wider-Concept of Teaching)
शिक्षण की व्यापक अवधारणा की बात की जाए तो शिक्षण के औपचारिक एवं अनौपचारिक स्वरूप और शासन व्यवस्था आधारित दृष्टिकोण से कुछ विद्वानों ने स्पष्ट करने का प्रयास किया है। देश की शिक्षण प्रणाली देश में निहित राजनैतिक व्यवस्था तथा शासन पद्धति से काफी प्रभावित होती है। शिक्षण का स्वरूप एकतंत्रीय शासन व्यवस्था में कठोर, स्वाभाविक प्रवृत्तियों के विकास का दमन करने वाला होता है जबकि जनतन्त्रीय शासन में शिक्षण सरल, नमनीय, मनोवैज्ञानिक पहलुओं से आच्छादित तथा बालकों के विकास को मूर्तरूप देने वाला होता है।
एकतन्त्रीय शासन व्यवस्था में शिक्षण का अर्थ
(Meaning of Teaching in Autocratic Gov.)
एकतन्त्रीय शासन व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षण का स्वरूप शासक के आदेशों पर आधारित होता है. शिक्षक और शिक्षार्थी अपनी इच्छा से शिक्षण के स्वरूप में कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकते, पूरी शिक्षण प्रक्रिया शिक्षक केन्द्रित होती है। इसमें छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नता, इच्छा, आवश्यकता, अभिरुचि, योग्यता को कोई भी महत्व नहीं दिया जाता है। शिक्षण में मनोविज्ञान का पूरी तरह से लोप रहता है। शिक्षार्थियों के मौलिक क्षमता को विकसित नहीं होने दिया जाता। इसमें स्मृति को बढ़ाने वाले ही प्रकरणों को पढ़ाया जाता है। बालक की मनोभावनाओं और जीवन-दर्शन को पूरी तरह दमित रखने का प्रयास इसके शिक्षण में किया जाता है।
जनतन्त्रीय शासन-व्यवस्था में शिक्षण का अर्थ
(Meaning of Teaching in Democracy)
इसके अन्तर्गत शिक्षण का स्वरूप मनोवैज्ञानिक पहलुओं से आच्छादित तथा शिक्षण-शिक्षार्थी सम्बन्ध को मानवीय गरिमा से सम्युक्त होता है इसमें शिक्षक-शिक्षार्थी अपने मनोनुकूल शिक्षण में सहभागी हो सकते हैं। इस पूरी शिक्षण प्रक्रिया को बाल-केन्द्रित बनाने पर बल दिया जाता है।
शिक्षण-प्रतिरूप या प्रकारताएँ
(Modalities of Teaching)
आधुनिक विचारधारकों ने चिन्तन-मनन के द्वारा और शोध के द्वारा शिक्षण के नवीन कलेवर देने में विशेष रुचि लिया। आज शिक्षण में नये-नये आयामों को अपनाया जा रहा है। शिक्षण को मापनीय बनाने पर विशेष रूप से बल दिया जा रहा है। इसमें शिक्षण प्रतिरूप के अन्तर्गत अनुबन्धन प्रशिक्षण, अनुदेशन तथा प्रतिपादन को स्थानापन्न किया गया है।
प्रायः ऐसा देखा गया है कि प्रत्येक शिक्षक की यह प्रबल कामना होती है कि उसका शिक्षण विद्यार्थियों के अनुकूल हो, उन्हें जो भी सूचना दी जा रही है वह उसे ठीक से समझ सकें। शिक्षक की इस अभिलाषा की पूर्ति करने के लिए शिक्षण में कुछ नवीन शब्दावलियों को स्थापित करते हुए शिक्षण के समानार्थी के रूप में महत्व कतिपय विद्वानों द्वारा दिया गया है। मुख्य रूप से शिक्षण का मूल उद्देश्य शिक्षार्थी के व्यवहार में परिवर्तन लाना तथा कौशलों का विकास करना है।
शिक्षण और प्रशिक्षण
(Teaching & Training)
शिक्षण बहुआयामी पक्षों के विकास से सम्बन्धित होता है। शिक्षण से शिक्षार्थी में 'ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्षों का विकास होता है। शिक्षण को शिक्षक के माध्यम से तब तक दिया जाता है जब तक शिक्षार्थी के व्यवहार में परिवर्तन, सुधार अथवा नवीन ज्ञान का आत्मसातीकरण नहीं हो जाता। शिक्षण से छात्रों में विश्वासों तथा दृष्टिकोणों में नवीनता का संचार होता है। अतः शिक्षण का मूलाधार व्यवहार परिवर्तन को मूर्त रूप देना और ज्ञान का प्रसारण है।
शिक्षण के सापेक्ष प्रशिक्षण को जब देखा जाता है तो यह प्रति प्रमासित होता है कि प्रशिक्षण, शिक्षण में निहित मंतव्यों को एकांगी रूप से पूर्ण करता है। मूलरूप से प्रशिक्षण में कार्य करना सिखाया जाता है। पढ़ाने की जिस शैली को शिक्षक अपने शिक्षार्थियों को बताता है और उसे करके दिखाता है।
शिक्षार्थी अपने शिक्षक के द्वारा बतायी गई शैली के अनुरूप अनुकरण करता है और आगे चलकर उस शैली में प्रशिक्षित हो जाता है। इस प्रकार प्रशिक्षण में क्रियात्मकता होती है। इसके अन्तर्गत शिक्षार्थी द्वारा अपने बुद्धि का प्रयोग करने की स्वतन्त्रता नहीं होती। प्रशिक्षण के दौरान कर्मेन्द्रियाँ अधिक क्रियाशील होती हैं। प्रशिक्षण में सीखने वालों को किसी चीज में दक्षता अभ्यास के द्वारा ही लाने का प्रयास किया जाता है। कौशल का विकास न करके प्रशिक्षण तकनीकी के विकास को मूर्त रूप देता है। प्रशिक्षण देने का कार्य विशेष प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक ही उपादेय होते हैं। यही कारण है कि B.Ed, B.T.C. आदि प्रशिक्षण संस्थानों में विविध प्रशिक्षणों में निष्णात व्यक्ति ही रखे जाते हैं।
निष्कर्षतः- शिक्षण एवं प्रशिक्षण की मूल मान्यताओं को देखें तो शिक्षण एवं प्रशिक्षण में मूलभूत अन्तर विद्यमान है। प्रशिक्षण की शिक्षण की सापेक्ष स्थापित करने से शिक्षण के बहुआयामी स्वरूप एवं उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव नहीं होगी अतः यह कहा जा सकता है कि शिक्षण और प्रशिक्षण दो भिन्न-भिन्न सम्प्रत्यय है।
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- प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
- प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
- प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।